कामिनी के 28 साल का निचोड़..🕉
बादल का सीना खोखला होता है
दूरसे लेकिन वो बहोत डराता है..
सूरज तक पर छा जाता है..
कभी फट पड़ता है,
कभी बह जाता है..
मिनटों में आसमान साफ हो जाता है..
वो आसमान जिसका खुदका भी अस्तित्व नही..
एक झूठ है..
पता नही नीला क्यो है?
कहीं पर चाँद का गोला लटका हुआ है..
कहीं तारे जडे हुए है..
न दिखनेवाली हवा तूफ़ान लाती है..
मरनेवाली आत्मा न जाने किधर जाती है..
रहस्यमय संसार में जीते है किसी विश्वास के सहारे..
जिसका नाम ईश्वर या धर्मानुसार है…
मज़ेदार बात तो ये है कि उसे भी किसीने देखा नही..
बस महसूस होता है..
है क्या हमारे पास..?
सिर्फ हम..
हमारी आत्मिक शक्ति..
हमारे भीतर का परमात्मा..आत्मा..
सब कुछ महसूस करते है हम..
उसे नही करना चाहते..
उसके साथ नही बैठना चाहते..
ध्यान को आडम्बर मानते है..साधक को ढोंग..
और हमारे अंदर छिपा हुआ मृग, सदियों तक कस्तूरी ढूंढता रहता है..
जब तक..लोग उसे बूढ़ा कहकर डराते नही…
वो भटकता रहता है..
रहस्य,रहस्य ही बनकर रह जाता है…
कहानी,कहानी रह जाती है..
सच्चाई छिपी छिपी अच्छी लगती है…क्यों?
लिख रही है..
कामिनी खन्ना🙏