जय जीवदानी🌹
एक विचार..
स्वाभिमान और अभिमान इन दोनों के बीच बहोत ही महीन रेखा होती है।
स्वाभिमान,अभिमान में परिवर्तित होने लगे तो समझिए आपका व्यक्तिमत्व अब प्यार भरा नही रहा।
व्यर्थ ही आप स्वाभिमान की आड़ लिए अपने आपको न्याय संगत सिद्ध करना चाहते हो।
और तब ही आप की उन्नति और सफलता के रास्ते बंद हो जाते है।
जब आप में “मैं”रह जाता है और “हम”मर जाता है।
सृष्टि को “हम”से प्यार है और “मैं” को वो जानती तक नही।
आप कौन हो ये आपके विचारों की संकीर्णता सिद्ध कर देती है।
इसलिए विशाल हृदय बनने की कोशिश की जा सकती है, क्योंकि सागर में सब नदियां समाती है,नदियों में सागर नही👍
कामिनी खन्ना